नीकु यानी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जिस पर कृपा होती है वह बेहिसाब होती है। जो भा गया, उसका ग्राफ तेजी से बढ़ गया। उनके कृपापात्रों की फेहरिस्त लंबी है। अपने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर ही नहीं, चहेते अफसरों, पत्रकारों व दूसरे लोगों पर भी मेहरबानी करते रहे हैं नीकु। किसी को विधान परिषद में भेज दिया तो किसी को विधानसभा टिकट देकर नेता बना दिया। किसी को मंत्री पद से नवाज दिया तो किसी को राज्यसभा का सदस्य बना दिया। कुछ नहीं तो किसी सरकारी संस्था का ही मुखिया बना डाला।
विधानसभा चुनाव में मददगार रहे एक कारपोरेट मैनेजर प्रशांत किशोर नीकु को भा गए। चुनाव निपटा और सरकार बनी तो नीकु ने उन्हें बतौर सलाहकार मंत्री जैसी हैसियत दे डाली। पर प्रशांत किशोर भी बड़े करामाती हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर भी हावी होना चाहते थे। बड़े नेता भला इसे कैसे पसंद करते। लेकिन नीकु के मुंह लगे सलाहकार से भिड़ भी तो नहीं सकते। कभी मौका मिला तब तो नीकु से दुखड़ा रो दिए|
हुआ यो कि जद(एकी) के वरिष्ठ नेताओं और जिलों के पदाधिकारियों की बैठक थी। इस अहम बैठक में चर्चा भी अहम होनी थी। प्रशांत किशोर भी आ धमके। मूकदर्शक रहना तो मिजाज नहीं उनका। लगे हर किसी को हिदायत देने। पार्टी में अरसे से अपना तन-मन-धन समर्पित करने वाले नेताओं को नागवार गुजरा। प्रशांत किशोर तो पार्टी के सदस्य भी नहीं हैं। अव्वल तो उन्हें पार्टी की बैठक में ही नहीं आना चाहिए था। प्रशांत किशोर लोकसभा चुनाव में मोदी के मददगार थे। चुनाव प्रबंधन के कौशल में पारंगत माने जाते हैं। नारे लिखने,प्रचार की रणनीति बनाने और मुद्दे तय करने के विशेषज्ञ बन गए हैं। लेकिन वह सब तो उनका धंधा है। पार्टी की सेवा तो की नहीं। समर्पण का भाव भी नहीं है।
अब यह सब फिर से उत्तर प्रदेश में दोहराया जा रहा है| जद को तो बिहार में छाँव जीतने की उम्मीद थी इसलिए उन्होंने प्रशांत किशोर को सहन कर लिए| परन्तु कांग्रेस को पता है कि UP में उसका पत्ता गोल होने वाला है| इसलिए वहाँ के कांग्रेसी नेताओं ने प्रशांत किशोर के खिलाफ आवाज़ बुल्लंद करनी शुरू कर दिया है|
सभी मझे नेता को पता होता है कि हारा नेता भी कई करोड़ का होता है| परन्तु यदि प्रशांत किशोर कि तरकीब सफल हुए और गठबंधन हुआ तब अधिकाँश को चुनाव लड़ने का मौका भी नही मिलेगा तब वे हारे हुए नेता ना होकर भूतपूर्व विधानसभा उम्मीदवार मात्र बन कर रह जायेंगे जिसकी कीमत दो कौड़ी भी नही होती|
फिर प्रशांत किशोर के खिलाफ विरोध के स्वर क्यों ना उठे?
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