पंजाब की घमासान चालू है| वहां मामला तरल है| नदी का बहाव निश्चित नही है| किसी और भी नाव जा सकती है| फिर भी अकाली और बीजेपी के लिए मुश्किल तो हो ही रही है| 10 वर्ष के राज के प्रति लोगो का आक्रोश होना स्वाभाविक है| और उपर से बादल परिवार का पंजाब के हर क्षेत्र पर दबदबा| भाई पत्ता भी नही हिलता पंजाब में बिना बादल परिवार के इजाजत के| इजाज़त माझे का? वही..वही..सही पकडे है| ऊपर से नवजोत सिंह सिद्दू इस उलटी हवा को तेज़ी से बहाने की कोशिस में लगे है|
बेशक लोग नवजोत सिंह सिद्दू को ताली का बैगन कहें, विभीषण कहें, अवसरवादी कहे परन्तु आप उनके बोलने के अंदाज़ को नहीं झुठला सकते| बन्दा जब बोलता है तब समा बाँध देता है| आश्चर्य होता है की कोई बन्दा 1 घंटे तक लगातार पर डायलाग कैसे बोल सकता है| सिद्दू है की छल्ले पर छल्ला उड़ाते ही जाते है| कहानियों की कोई कमी नही है उनके पास|
सूबे के बाकी नेता भले बादल परिवार के खिलाफ ज्यादा न बोल पाते हों पर नवजोत सिंह सिद्दू खुल कर वार कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के मामले में ज्यादा आक्रामक हैं उनके तेवर। कांग्रेस के लिए पंजाब में मुफीद साबित हो रहे हैं नवजोत सिंह सिद्धू। पाजी के निशाने पर बादल परिवार है।
यों सिद्धू हास्य का सहारा लेते हैं और श्रोता मन से सुनते हैं उनकी बात। भ्रष्टाचार का मुद्दा बादल परिवार की कमजोर नस है। सिद्धू ने सूबे को दस साल में जम कर लूटने का आरोप लगाया है। सिद्दू आबकारी, पर्यटन और परिवहन के आंकड़ो जमकर सुनाते है| शराब के ठेकों का आंकड़ा से जनता को खूब रिझाते है। यदि इसी प्रकार जनता सिद्दू को सुनती रही और वे सत्ताधारी कुनबे के साम्राज्य का कच्चा चिट्ठा इसी तरह खोलते रहे तो सिद्दू को कुछ मिले या ना मिले बादल परिवार की साख मिटटी में मिल जायेगे और साथ में दूब जायेगी बीजेपी।
दरअसल सिद्दू की बादल से पुराना हिसाब बाकी है|बादल के सिफारिश पर उनको लोकसभा सीट छोड़ कर अरुण जेटली को देनी पड़ी थी जिसे अरुण जेटली ने गँवा दिया| फिर किसी ने नवजोत सिंह सिद्दू की दो साल तक कोई खोज खबर नहीं ली| जब उन्होंने अरविन्द कजरीवाल से बातचीत शुरू किया तब अचानक ही बीजेपी को उनकी याद आई तथा उनको राज्यसभा के लिए मोनोनित किया गया| अब सिद्दू बच्चा तो है नहीं| बेकफुट पर नहीं खेलते| सचिन को उन्होंने ही आगे बढ़कर छक्का मारना सिखाया था| सो वही छक्के मारने के अंदाज़ में वह पंजाब के पिच पर बढ़ गए| यह दूसरी बात है की यहाँ छक्का नही पडा बल्कि खुद में छक्के छूट गये| केजरीवाल ने अपनी शातिर राजनातिक चालो से आप पार्टी में मुख्यमंत्री की गाजर दिखा इनके मुंह पर लात मार दीया| फलस्वरूप सिद्दू को ना तो बीजेपी के लायक छोड़ा ना की कांग्रेस में बड़ी हैसियत पाने लायक|
फिर जो हार मान जाए वह सिद्दू हो नही सकता| अमृतसर पूर्व की सीट पर अपने चुनाव को अपनी पत्नी नवजोत कौर के हवाले छोड़ दिया है। कांग्रेस जम कर भुना रही है उनका नाम। सिद्धू का लक्ष्य अकाली सरकार को हराने तक सीमित नहीं है। अलबत्ता बादल परिवार को गहरी चोट पहुंचाने का है।
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