जब देश आज़ाद हुआ था तभी सरकार को “कल करे सो आज कर, आज करे सो अब” की इक्छा और त्वरा काम करते हुए देश के सर्वाधिक उपेक्षित वर्ग “किसान” के हित में काम करना चाहिए था, क्योंकि कृषि प्रधान देश होने के नाते उनके विकास में सारे देश का विकास था| परन्तु पिछले 67 वर्षो में किसान के साथ जो खिलवाड़ है है वह सबने देखा और सुना है|
1947 से अबतक देश में खेती योग्य भूमि की कमी होने के बावजूद खाद्य उत्पाद में कई गुना बढोतरी हुयी है| परन्तु कम अनाज पैदा होने के बावजूद जो किसान, गाँव के बनिए से उधार लेकर अपने खेत में ही मजदूर बन कर काम करते हुए जीने के निम्नतम तरीके को अपनाते भी जीवित रहते हुए खेती करता था, वही किसान, आज अधिक अनाज पैदा करके भी आत्महत्या करने को मजबूर हो गया है| निश्चित तोर पर किसान में नाम पर राजनीति करके, किसान विरोधी सरकारें किसान की समस्या पर ध्यान नहीं रही थी|
देर से ही सही प्रधानमन्त्री मोदी ने इसका संज्ञान लिया और एक अच्छी किसान बीमा पालिसी लाकर किसानो को सहायता करने की एक इमानदार कोशिस किया है| परन्तु क्या यह काफी है? क्या यह योजना अन्य योजनाओं की भाति कागजों में ही सिमट कर नहीं रह जायेगी?
किसानों को अपेक्षाकृत कम ब्याज पर ऋण देने के मामले में हिला-हवाली करते हुए बैंकों को प्रधानमन्त्री ने नसीहत राय दिया कि बेमौसम बारिश, सूखा व ओलावृष्टि से फसलों की बर्बादी के कारण किसानों की बदहाली और उसकी प्रतिक्रिया में उनकी असमय मृत्यु जैसी घटनाओं से बैंकों को भी संवेदनशील होना चाहिए क्योंकि किसानों को ऋण देने से बैंकों को नुकसान नहीं होगा|
क्या सच मे उनकी राय सही है? उत्तर है शायद हाँ, शायद नहीं|
उदाहरण के तौर पर किसान क्रेडिट कार्(KCC) को लेलें जिसमे किसान को मात्र 7% पर ऋण उपलब्ध है| कागजों पर यह एक अच्छी योजना है| परन्तु खेती की बर्बादी होते ही किसान कर्ज के अभेद जाल में जकड़ जाता है। अगर कहीं दो-तीन साल लगातार खेती में घाटे की स्थिति चली तब तो उसकी दशा बहुत बुरी हो जाती है। ऐसे में उसे दिखने लगता है कि कर्ज चुकाने के लिए अब उसे अपनी पुरखों की निशानी को एक न एक दिन खो ही देना पड़ेगा और यह चिंता उसे इतना ज्यादा परेशान कर देती है जो उनके आत्महत्या का कारण बनती है|
ऐसा होने की बजह है| जिसे जानते हुए भी अधिकारीगण कान में तेल डाले बैठे है और वे प्रधानमन्त्री तथा सम्बन्धित मत्री के संज्ञान में किसान क्रेडिट कार्ड में व्याप्त भ्रष्टाचार नहीं ला रहे है| वो तो नहीं लायेंगे क्योंकि ऐसा करने पर उनकी अयोग्यता सिद्ध हो जाएगी| परन्तु क्या जनता के प्रतिनिधि होने के नाते प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों को ज़मीनी हकीकत स्वयं नहीं मालूम करनी चाहिए?
सही तो यह है कि किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए किसान को कमीशन देना पड़ता है| उसके बावजूद उसे ऋण तबतक नहीं मिलता जबतक सम्बन्धित अधिकारी अपना कमीशन अग्रिम नहीं ले लेता| इस घूसखोरी के तांडव की वजह से कई बार KCC पर लिए गए कर्ज की ब्याज दर महाजन के कर्ज से भी ज्यादा हो जाती है। यह भी एक वजह है कि किसान क्रेडिट कार्ड योजना किसानों के जीवन में कोई खास परिवर्तन नहीं ला सकी है बल्कि कई किसान तो इसे अपने अभिशाप का कारण मानते हैं। उनका कहना है कि जब फसल अच्छी होती है तब भी घूसखोरी की वजह से KCC से ऋण लेने में उनका इतना पैसा अग्रिम निकल जाता है की खेती के मुनाफे से उसी की भरपाई नहीं हो पाती इसलिए अच्छे दिनों में भी किसान ऋण से चुकता नहीं हो पाता।
क्या मोदी जी सच में इस ज़मीनी हकीकत से परिचित नहीं है? या उन्होंने कुर्सी में बैठने के बाद जोखिम से बचने के लिए भ्रष्टाचार से टक्कर लेने का इरादे से समझौता कर लिया है। और देश में आतंरिक अवस्था में कोई ख़ास फर्क ना लाने के कारण वे विदेशी मोर्चे पर देश का झंडा बुलंदी से फहराने का भ्रम पैदा कर रहे हैं?
लोगों को भ्रष्टाचार से तब तक पूरी तरह मुक्ति नहीं मिल सकती जब तक कि राज्य भी इस मामले में कटिबद्ध न हों और अभी भी कई राज्यों में विपक्ष की सरकारें हैं। मोदी कह सकते हैं कि इसलिए भ्रष्टाचार को खत्म करने के उनके इरादे परवान नहीं चढ़ पा रहे। परन्तु बीजेपी शासित प्रदेशो का हाल भी कुछ ख़ास अच्छा नहीं है| मध्यप्रदेश हो या राजस्थान या छतीसगढ़, सभी जगह से अफसर-शाही और मनमाने तौर से नियमो की व्याख्या एक आम बात होती जा रही है| यह कहना अनुचित ना होगा कि एक ओर गैर भाजपा शासित राज्यों में स्वेच्छाचारिता व भ्रष्टाचार का तांडव जारी है तो दूसरी और बीजेपी शासित राज्यों में भी शोषण और दोहन का भयानक नाच चालू है|
सीबीआई भ्रष्टाचार पर रोक के मामले में वैसे ही सुस्त बनी हुई है जैसी यूपीए सरकार में थी। सीबीआई की इस मामले में उदासीनता पर मोदी सरकार में चर्चा तक नहीं हो रही। इससे यह धारणा पैदा हो रही है कि भ्रष्टाचार असाध्य समस्या बन चुका है क्योंकि इस मामले में सभी पार्टियां एक ही थैली की चट्टी बट्टी हैं।
मोदी व्यक्तिगत रूप से ईमानदार हो सकते हैं परन्तु उनके सहयोगी और मातहत अधिकारीगण उसकी कार्य की सीमाए संकुचित कर रहे है| मोदी जी को उनको अधिक प्रेरित कर उनसे अधिक काम करना चाहिए| साथ ही उनके मंत्रियो और बीजेपी के अन्य नेताओं को अपने क्षेत्र की जनता से मिलकर ज़मीनी हकीकत से अपने को और मोदी जी को परिचित करना चाहिए ताकि लीक की फ़क़ीर कर्मचारियो में अधिक जागरूकता ला कर, उनको गरीब और त्रस्त जनता के प्रति सम्वेदनशील बनाना चाहिए| यह अति आवश्यक है क्योंकि मोदी जी पर कारपोरेट वर्ग की तरफदारी कर उनको फायदा पहुचाने का आरोप बहुत जोर से लगाया जा रहा है|
समय मुट्ठी से रेट की भाँती खिसकता जा रहा है| लेखक मोदी जी की कार्यकुशलता एवं इमानदारी का कायल है| परन्तु एक चना अकेले भाड़ नहीं फोड़ सकता| यदि यह सम्भव होता तो पूर्व-प्रधानमंती श्री डॉ मनमोहन सिंह ने यह कारनामा कर दिखाया होता| अच्छा होगा मोदी केवल अफसरों पर ही भरोसा ना करके सभी को अपने साथ लेकर सबका विकास करें|
मोदी जी! अब समय है “कल करे सो आज कर, आज करे सो अब” की उर्जा और त्वरा से काम करने और करवाने का|
- गालिब छुटी शराब - October 21, 2021
- गांधी जी और उनको असली श्रदांजलि - October 2, 2020
- फिल्मो में कास्टिंग काउच की हकीकत - April 24, 2018
अगर छोटी जोत खत्म करके सामुहिक रुप मे आधुनिक खेती की जाये तो किसानो की 99% समस्याओं का स्वत समाधान हो जायेगा।विनोद तापडिया जी ने भी सही बात लिखी है|
बहुत ही सामयिक चेतावनी! हकीकत का आइना दिखाता ब्लाग!
हम रोज देखते हैं किसानों की सच्चाई, पंजाब वाले तो किसी तरह से दुखी नहीं हैं, फिरभी लिमिट पे पैसे उठा रखे है किसानों ने, कुछ फिजूलखर्ची के लिये प्रयोग करते हैं पर जयादातर ने ब्याज पे महाजनों को दे रखे है|
सर क्या यही वहाँ के किसान करते है जहां के किसान आत्महत्या कर रहे है?
पंजाब में फसल खराब के कारण आत्म हत्या करने वाले बहुत rare हैं, कोई ना कोई ओर कारण होता है सर।
मैं उन किसानो की बात कर रहा हूँ जो पहले से मज़बूर थे और अब और मज़बूर हो कर आत्महत्या कर रहे है।
यहां तो सभी “जमींदार” है सर, 2 किल्ले का मालिक भी साल का 3-4 लाख कमाता है|
फिलहाल उत्तर प्रदेश जो कि किसान बहुल प्रदेश है में अगले वर्ष चुनाव होने है । मोदी जी कुछ भी कर ले हारना तय है । क्यू कि किसानो की तरफ से आँखे मोड़ने का खामियाज़ा भुगतना होगा । कल ही पच्छिमी उत्तर प्रदेश में एक बहुत बड़ा किसान आंदोलन हुआ है जो की वर्तमान अखिलेश और मोदी सरकार के खिलाफ था । मायावती की वापसी तय दिख रही है । और ये प्रदेश का दुर्भाग्य होगा ।
पिछले 2 सालो में मोदी सरकार ने सूखे से ग्रस्त उत्तर प्रदेश के किसानो के लिए हजारो करोड़ रूपये प्रदेश सरकार को दिए । जिसमे तय ये था की आधा पैसा राज्य सरकार देगी । लेकिन मुलायम सरकार ने मात्र खानापूर्ति की और ज्यादतर रकम खा गए । केंद्र ने इस खर्चे से बचने के लिए बीमा योजना को सरल बनाया ताकि केंद्र पर हजारो करोड़ का बोझ न पड़े और सीधे बीमा कंपनी से किसानो का पाला पड़े । लेकिन सरकार के कर्ताधर्ता भूल जाते हैं की ऐसे हालात में बीमा का प्रीमियम किसान कहाँ से देगा ?
लेकिन मुझे लगता है की ये सरकार भी संवादहीनता की शिकार है या फिर असल समस्या से कन्नी काट रही है ।
पिछले वर्षो में यूरिया , DAP , NPK आदि उर्वरको के दाम बढ़ा दिए गए ; डीजल के दाम बढ़ा दिए गए यानी कि फसल के लागत मूल्य में अच्छी खासी बढ़ोत्तरी हो गयी लेकिन गेंहू , धान , कपास आदि के मूल्य समानुपातिक दर से नहीं बढाए गए । इस सरकार ने भी कांग्रेस सरकार की तरह वार्षिक 50 -60 ₹ प्रति कुंतल दाम ही बढाए । ऊपर से लगातार 3 वर्षो से सूखे और कम बारिश ने किसानो की कमर तोड़ दी ।
अब जब किसानो की जेबें खाली हैं तो ये बीमा योजना किस काम की ? ये तो मात्र किसानो की जेब से पैसे निकालने की योजना है । और आज जब किसान भूखा नंगा बैठा है तो वो बीमे का प्रीमियम कहाँ से देगा ? निश्चित सरकार की बीमा योजना फेल होगी । मुझे लगता है और विश्वास है की सरकार किसानो की समस्यायो के आस पास से गोल – गोल चक्कर लगा रही है लेकिन असल समस्या से आँख मूंदे हुए है ।
असल समस्या ये है की आज किसान को लागत मूल्य के हिसाब से फसलों का मूल्य मिले , फिर न किसानो को बीमे की जरूरत होगी न सूखा राहत पैकेज की ।
बहुत अच्छा लिखा है|
same i tweeted about #Modi is vote drifter but where is work to impress farmers #if he expecting win from villages vote he have to look in to matter himself which is difficult …
KCC का एक साल का ब्याज केंद्र सरकार माफ कर दे तो किसानों को कुछ सहारा मिलेगा
लेख अक्षरश सत्य पर आधारित है।मैं ख़ुद खेतीरत हूँ और किसान की पीड़ा को महसूस कर सकता हूँ। कृषि क्षेत्र में आमूल परिवर्तन समय की माँग है।मोदी जी का Land Reform/Acquisition बिल ऐक अच्छी पहल थी जिसे विरोधियों ने नकार कर राजनीति करी।छोटा किसान फ़सल बर्बादी को बर्दाश्त नही कर सकता और ना ही खेती में आधुनिक यंत्रों का उपयोग कर सकता है।मेरे विचार में बड़ी land holdings ही ऐक कारगर रास्ता है।भ्रष्टाचार में भी ऐक बड़ी lobby लिप्त है जिसको पारपाना आसान नही है पर सम्भव है जिसे सिर्फ़ मोदी जी ही कर सकते हैं।In a marathon you can’t run as a sprinter! मंत्रिमंडल मे भी talented की कमी भी महसूस होती है साथ में लालफ़ीता शाही वही पुराने बाबू वाले 9 to 5 वाले ढर्रे पर काम करता है।होगा,परिवर्तन आयेगा और हम सागर मंथन के दौर में हैं,भविष्य उज्जवल होना चाहिये।लोगों की सोच में परिवर्तन आ रहा है और यही ऐक अचछे Leader की पहचान होती है की वह जनता को कुछ अच्छा सोचने को मजबूर करदे।
अगर छोटी जोत खत्म करके सामुहिक रुप मे आधुनिक खेती की जाये तो किसानो की 99% समस्याओं का स्वत समाधान हो जायेगा।विनोद तापडिया जी ने भी सही बात लिखी है|
Good reading. With facts.
Nicely written. I love your posts. Keep writing.
It looks Modi ji has wasted much time in building his image so that it becomes better than Nehru. But he promised to serve India. So he must devote his time in doing so.
Correct….It is timely warning to Modi Government as we don’t want old misrule.