निक्कू उर्फ़ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक संयमी व्यक्ति है जो तमाम व्यस्तताओं के बावजूद अपने स्वास्थ्य का पूरा ख्याल रखते हैं। खानपान में तो संयम बरतते ही हैं, सुबह की सैर के लिए भी वक्त निकाल लेते हैं।
पिछले दिनों वे टहलते हुए अपने बड़े भाई के घर जा धमके। बड़े भाई यानी एक साल पहले के जानी दुश्मन यानी और कोई नहीं बल्कि लालू प्रसाद यादव| इसकी कोई पहले से तय योजना नहीं थी। उनसे मुलाकात करने की कोई तात्कालिक जरूरत या बाध्यता भी नहीं थी। पर अचानक मन में आया और जा पहुंचे अपने सहयोगी के घर।
लालू भी क्या कर सकते थे। जब छोटा भाई बिना कोई सूचना दिए घर आ ही धमका तो फिर प्रेम पूर्वक मिलते ही। हालांकि दोनों के घरों में ज्यादा दूरी नहीं है। नीतीश तो एक, अणे मार्ग स्थित मुख्यमंत्री निवास में ही रहते हैं। जबकि लालू का घर 10 सर्कुलर रोड पर है। पड़ोसी होते हुए भी इससे पहले नीतीश बिना बताए लालू से मुलाकात करने कभी नहीं गए थे। यों भी यह उनके स्वभाव में ही है कि पहले से कार्यक्रम तय किए बिना वे कोई काम करते ही नहीं।
चूंकि मुलाकात अपवाद स्वरूप थी तो सियासी हलकों में कयास लगने ही थे। मसलन कानाफूसी यह भी सुनी गई कि नीतीश को न चाहते हुए भी बहुत कुछ करना पड़ रहा है। महागठबंधन की सरकार के मुखिया ठहरे। सहयोगियों राजद और कांग्रेस दोनों को खुश रखने की लाचारी है। वक्त बदल गया है। पहले जैसी हैसियत अब नहीं है कि जो चाहते थे, वही हो जाता था। सहयोगी दलों के मंत्री और नेता तो उनके इशारों पर नाचने के लिए मजबूर हैं नहीं। साफ है कि अब नीतीश के लिए राजद और अपनी पार्टी जद (एकी) में ज्यादा फर्क नहीं है। जब भाजपा से गठबंधन था तो सब नीतीश को चुपचाप सुनते थे। अब उल्टा है। नीतीश को सबकी सुननी पड़ रही है। फिर लालू से तो रिश्ता भी बड़े भाई का जोड़ रखा है। उनकी मेहरबानी के बिना नीतीश का मुख्यमंत्री बने रहना मुमकिन कहां है।
वैसे आजकल बीजेपी के पास आने की पदचाप सुनी जा सकती है| हालाँकि यह कहना मुश्किल है की बीजेपी और निक्कू के बीच बढती नजदीकियां बिहार के मुख्यमंत्री के इमानदारी का प्रतीक है या मौकापरस्ती का|
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