सम्पादक के कलम से
To read English translation, please click here
बेशर्म नेताओं तुम अब और कितना गिरोगे
पिछले कुछ दिन भारतीय प्रजातंत्र और राजनीति का सबसे काले दिन कहे जाएँ तो कोई आश्चर्य नही होगा | समझ में नहीं आता कि भारतीय राजनीति और भारतीय राजनेताओं का और कितना पतन होगा |
यों तो कहने को राजनीति का लक्ष्य देश और देशवासिओं की भलाई होता है परन्तु सच्चाई तो यह है कि राजनीति का रास्ता केवल राजनेताओं के व्यक्तिगत स्वार्थपूर्ति का मार्ग रह गया है | और ऐसा आज अचानक नहीं हुआ है | आज इस राजनैतिक पतन का जो भयंकर स्वरुप दिखाई दे रहा है उसकी नीव १५ अगस्त १९४७ को पड़ गई थी जब तत्कालीन राजनेताओं ने, बापू के निर्देश का विरोध कर, देश का विभाजन स्वीकार कर लिया था |
हो सकता है मेरी बात बहुत से पाठकगण के गले से नीचे ना उतरे, परन्तु सच्चाई तो यही है कि देश के विभाजन ने केवल देश को दो हिस्से में ही नहीं विभाजित किया बल्कि उस समय जो विभाजन शुरू हुआ वह आज तक देश को कभी धर्म, कभी भाषा कभी जाति तो कभी सामाजिक अंतर को मिटाने के नाम पर बांटता चला जारहा है | गांधी जी देश विभाजन के विरुद्ध थे क्योंकि उनका मानना था कि विष के बीज से विष का पेड़ और विष के पेड़ से विष फल ही होता है | एक विभाजन दूसरे विभाजन और दूसरा विभाजन अनेक विभाजन को जन्म देने वाला होता है | यह एक अंतहीन शृंखला है | अब आप ही देखिये देश तो हिन्दू-मुसलमान के नाम पर बाँट गया परन्तु यह धार्मिक विभाजन समाप्त होने के स्थान पर खतरनाक रूप में बढ़ता ही गया और बढ़ता ही जा रहा है |
ऐसा नहीं कि उस समय के राजनेता इस बात को नहीं जानते थे | वे अच्छी तरह से जानते थे कि देश का विभाजन अंतहीन समस्याओं को जन्म देगा परन्तु सत्ता का लोभ, इतिहास में अपना नाम दर्ज की चाहत, स्वयं को शासक के रूप में स्थापित कर सत्ता का सुख भोगने की कामना ने उनको बापू की उपेक्षा कर देश का विभाजन स्वीकार करने को मज़बूर कर दिया | फिर जिस पतन की राह पर नेतागण चल पड़े उसका कोई अंत नज़र नहीं आ रहा है | इन राजनेताओं ने अगली पीढ़ी के नेताओं को एक ही आदर्श दिया और वह आदर्श था वोट-बैंक की राजनीति, उसके द्वारा सत्ता को हथियाना और अपने और केवल अपने निहित स्वार्थ सिद्धि करना |
नयी पीढ़ी के राजनेताओं ने केवल वोट-बैंक और व्यक्तिगत निहित स्वार्थ को ध्यान में रख कर ना केवल आपातकाल लगाया, संविधान के साथ खिलवाड़ किया बल्कि न्यायपालिका एवं कार्यपालिका को भी कब्ज़े में करने की कोशिश किया | इसका पुरे देश में विरोध भी हुआ |
परन्तु दुर्भाग्य तो देखिये जिन राज नेताओ ने इस विरोध का नेतृत्व किया वह स्वयं ही सत्ता के लोभ में इस तरह पड़े कि एक दूसरे का टांग खीचने का खेल खेलते हुए सत्ता गवां बैठे | सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह रहा कि ये राजनेता सत्ता तो हार बैठे परन्तु वोट-बैंक की राजनीति एवं सत्ता के ज़रिये निहित स्वार्थपूर्ति का खेल खेलने में पूरी तरह माहिर होगये |
फिर चला वोट-बैंक की राजनीति एवं सत्ता के ज़रिये निहित स्वार्थपूर्ति का वह खेल जिसने सभी, जी हाँ तकरीबन सभी, नेताओ के दिल और आत्मा को कैंसर की भाति रुग्ण कर दिया | आज एक भी राजनेता, एक भी राजनितिक दल नहीं दिखता जो देश हित को स्वार्थ हित से ऊपर समझता हो | इन सभी के लिए वोट पाकर सत्ता को हासिल करना देश की सेवा के लिए नहीं अपितु स्वम हित के लिए आवश्यक होगया है |
ये नेतागण वोट के लिए किसी भिंडरवाल का सृजन कर सकते है, वोट के लिए उसका नाश करने के लिए स्वर्ण मंदिर पर हमला कर सकते है, प्रधानमंत्री की हत्या होने पर नर संघार कर सकते है | ये वोट के लिए मंडल-कमंडल की राजनीति का खेल खेल कर देश को फिर से विभाजित कर सकते है | वोटगत राजनीति के लिए, लोकतंत्र की हत्या कर, ४४ वर्षों से तेलंगाना समस्या का हल ४४ मिनिट में लोक सभा के द्वार बंद कर पा सकते है | लोकसभा में जो कुछ हुआ वह लोकतंत्र के लिए वहुत भयानक था | इस “वोट पकड़” के भयानक खेल में हर एक सांसद शामिल था चाहे बहार निकल कर कोई भी बयां देता रहे | मजेदार बात तो यह है कि जिन नेताओं ने लोक सभा के तेलेंगाना बिल का समर्थन किया वही इसे वोट-बैंक राजनीति के लिए राजयसभा में बहस का ड्रामा खेला कर रोकना चाहते थे |
यह वोट और सत्ता की राजनीति नहीं है तो क्या है जो LTTE को ट्रैनिंग देती है और फिर उनको पकड़ने के लिए शांति-सेना भेजती है और फलस्वरूप देश का प्रधानमंत्री की हत्या हो जाती है | फिर उस हत्या पर भी राजनीति होती है | वोट और सत्ता का खेल जहां इस प्रधानमंत्री के हत्या की खलनाइका को प्रधानमंत्री की विधवा से माफ़ करा कर केवल आजीवन कारावास की सज़ा दिलाती है वहीँ अन्य ३ हत्याओं के फांसी की सज़ा को १४ साल लटका कर रखती है | फिर जब कोई अन्य राजनेता, वोट और सत्ता का खेल खेल कर, उनको छोड़ना चाहता है तो यही वोट और सत्ता का खेल शोर मचाता है | वोट और सत्ता का खेल आंतंकवाद ऐसे मुद्दे को मुहरा बना कर जहां किसी गुरु को फांसी पर चढ़ा में जल्दबाजी दिखाता है वंही किसी भुल्लर के फांसी का विरोध करता है |
कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी कि कल यही वोट और सत्ता की राजनीति किसी प्रधानमंत्री, किसी मुख्य मंत्री या किसी निर्भया के बलात्कारी को देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बना दे क्योंकि इसी खेल ने तो हत्यारे, भ्रष्टाचारी और बाहुबलियों को राजनीति में शामिल किया है |
वोट और सत्ता का खेल केवल पुरानी पार्टी और पुराने नेता ही नहीं खेलतीं अपितु कल की जन्मी पार्टी और अंडे से बाहर आते नव सीखिए नेता भी “वोट खींचो और सत्ता का सुख भोगो” का खेल खूब अच्छी तरह से खेलते है | कभी १९४७ में एक पार्टी ने बापू के कंधे पर चढ़ कर सत्ता हासिल कर उनके आदर्श को लात मार वोट और सत्ता का खेल खेला उसी तरह नव जन्मी पार्टी ने भी अपने गुरु का हाथ पकड़, उनके कंधे पर चढ़ सत्ता पाने के बाद उनको ही मतलबी और गैरज़िम्मेदार बता कर उनको दर-किनार किया | और फिर माओवाद, कश्मीर अलगाववाद, भुल्लर तथा अन्य मसलों पर गैरज़िम्मेदार बयान वोट के ज़रिये सत्ता पाने के लिए का हिस्सा ही मना जाना चाहिए |
फिरतो क्या इसका केवल एक ही अर्थ है कि राक्षस के परिवार में केवल राक्षस ही जन्म ले सकते है, प्रह्लाद के जन्म की आशा व्यर्थ ही है? नहीं, प्रह्लाद भी जन्म लेते है चाहे उनकी संख्या कम ही क्यों ना हो | भारत का भविष्य इन प्रह्लादों पर ही टिका हुआ है | आज भी कुछ प्रह्लाद है और भारत उनका आह्वाहन करता है की वे आगे आ कर देश को इन राक्षसों से बचाएं |
यदि आज का यह रुदन “बेशर्म नेताओं तुम अब और कितना गिरोगे” देश के नेताओं ने नहीं सुना तो देश में वह क्रांति आएगी जो इन स्वार्थी, सत्ता लोभी, सत्ता के मद में चूर नेताओं को ऐसे उड़ा ले जायेगी जैसे आंधी सूखे पत्तों के उढ़ा ले जाती है |
- बोया पेड़ नवजोत सिंह सिद्दू का तो जीत कहाँ से होय - January 23, 2017
- Modi government Concedes to Win - January 19, 2017
- नरेन्द्र मोदी का राजनैतिक बनवास कमरा तक छिना - January 19, 2017
I fully endorse the views presented in this post……Thank You……….It is time to teach politicians that they can’t take people for granted….and also to make them learn politics which is a very serious business of managing people and the country. So let us become a wall of “ONENESS” and see the difference…..
Sir!!Its really a Editor’s work. Brilliant. Short summary of the role of all politicians from Gandhi till MMS.Nation has started stinking by these obnoxious politicians who don’t have any respect for the Democracy only self goals are more important. Excellent write up.Write up is a school for immatures writers like me #hats off.
By and large I endorse your view.The vote bank politics is rooted in Seculer politics as defined by Pt.Nehru and his followers,even Gandhi fell into the trap or if I may say, was also the philosphy of Gandhi ji.Today’s entire vote bank politics hinge around this philosphy.