मीडिया और सेक्युलर वर्ग
सूरत पुलिस ने जालीदार टोपी पहनाकर आतंकवादी विरोधी मुहीम की प्रशिक्षण क्या लिया कि पुरे देश में हंगामा मच गया. मज़े की बात यह है कि गुजरात बीजेपी के अल्पसंख्यक यूनिट ने अपना इस शर्मनाक के विरुद्ध विरोध दर्ज कराया था. इसके अतिरिक्त किसी मुस्लिम वर्ग ने विरोध दर्ज नहीं कराया. परन्तु देश के सेकुलर वर्ग के पेट में, इस घटना को ले कर, इस तरह दर्द हुआ की उसने खूब हंगामा किया तथा उसके हंगामे में मिडिया ने भी खूब साथ दिया. ठीक ही किया. क्योंकि मिडिया को अपने TRP से मतलब है और सेकुलर वर्ग को मोदी विरोध से. देश से मतलब ना इनको है ना ही उनको.
यह सही है कि किसी धर्म या सम्प्रदाय को आतंकवाद से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए क्योंकि किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के सभी व्यक्ति कभी भी आतंकवादी नहीं हो सकते. साथ ही यह भी सही है कि सभी आतंकवादी विदेश से नहीं आते. उनकी योजना चाहे विदेश में बनती हो, चाहे उनकी के संसाधन विदेश से आते हो परन्तु उनसे सहानभूति रखनेवाले, उनको सहायता देने वाले और उनकी तरफ से उनकी योजना को कार्यान्वित करने वाले इसी देश में रहते है. इस बात का प्रमाण इस देश में होनी वाली गिरफ्तारियों है. आखिर कोई यह क्यों नहीं बताता कि स्लीपर सेल क्या चीज़ है? कहाँ और किस देश के लोग स्लीपर सेल में शामिल होते है? जहाँ मीडिया और सेक्युलर वर्ग गुजरात में हुई शर्मनाक घटना तो उजागिर करने पर लगा है, वही क्या उसका कर्तव्य आतंकवाद और उससे सम्बंधित व्यक्तियों और गिरोह को उजागर करना नहीं है? यदि मीडिया और सेक्युलर वर्ग केवल संप्रदाय विशेष के प्रति होने वाले कतिपय अन्याय को ही उजागर करता रहेगा परन्तु समाज में फैलने वाले आतंकवाद के प्रति उदासीन रहेगा तो क्या यह ना माना जाए कि उसका ध्येय केवल और केवल राजनैतिक है और उसकी पूरी मुहीम केवल मोदी और बीजेपी विरोधी ही है?
यद्दीप इसका जवाब देने से मीडिया और सेक्युलर वर्ग बचेगा परन्तु उसे याद रखना चाहिए देश की जनता सब देख रही है और समय आने पर सब से जवाब लेलेगी.
यह अच्छी तरह से नोट कर लिया जाए की देश की जनता से मतलब सभी वर्ग और संप्रदाय से है ना कि केवल हिन्दू वर्ग से. यह नोट लगाना इस लिए आवश्यक है क्योंकि कुछ लोग इस लेख को मुस्लिम विरोधी मान कर चिल्ल्पो करने लगेंगे.
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