Category: यादों के झरोखे से

संकटमोचन बड़ी बहन

शायद दूसरी या तीसरी में पढता रहा होऊंगा। दोपहर को दूसरी मंजिल के मुरेड पर दो कबूतर दिखाई दिए। छत पर जाने के लिए लकड़ी की सीढ़ी ही थी। परंतु वह केवल काम पड़ने ओर लगती थी। कबूतर देख कुछ ऐसा ताव चढ़ा की, तुलसीदास को पिछड़ते हुए, बारी(दीवार से निकली िनत) पकड़, बमुश्किल तमाम, जान खेल, चढ़ना था सो चढ़ गया।

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