कोई कुछ भी कहे, सही तो यह है की बीजेपी 11 जनवरी के बाद ही प्रांतीय चुनाव में लिए पूरी तरह से कूदी है क्योंकि 11 जनवरी को बिडला-सहारा डायरी की जांच की मांग का सुप्रीम कोर्ट में खारिज होना नरेंद्र मोदी और बीजेपी के इए बड़ी राहत की बात है| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिलो-दिमाग का भारी बोझ खत्म हुआ है। वे अब पूरे दमखम और आत्मविश्वास में विरोधियों से निपटेंगे। विधानसभा चुनाव में डटकर प्रचार करेंगे। एक तरह से 11 जनवरी भी उनका टर्निंग पाइंट हुआ।
जहाँ 11 जनवरी का फैसला बीजेपी और मोदी के लिए बड़ा मनोवैज्ञानिक booster है वंही इस फैसले ने भूकम्पी राजनीति के पक्षधर कांग्रेस, बसपा, सपा, ममता पार्टी, अरविंद केजरीवाल के नेताओं को बड़ा धक्का भी दिया| अब देश में जबरदस्त राजनैतिक टकराव होगा और चुनावी जीत की वजह से इसमें नरेंद्र मोदी का झंडा ऊंचा उठता जाएगा।
सोने पर सुहागा, उत्तर प्रदेश में नेता जी की जगह बेटा जी ने ले लिया जो की विपक्ष के लिए शुभलक्षण नही है क्योंकि यदि नेता जी का खेमा बेटा जी के खेमे से सुलह नही करता तो सपा के वोटो का बटवारा होगा| उपर से तुर्रा की कांग्रेस 100 सीट मांग रही है जिसका सीधा अर्थ होगा की 80 सीट का नुक्सान जिनपर कांग्रेस सीधे सीधे बसपा और बीजेपी से हार जायेगी|
अखिलेश बनाम मुलायम के झगड़े से सपा का तो नुक्सान हुआ ही है, बसपा का कोई फायदा नहीं हुआ है क्योंकि सपा कांग्रेस से डील कर मुस्लिम वोटो का पलायन रोक लेगी| इसका फ़ायदा केवल बीजेपी को होगा जो 11 जनवरी के फैलसे से उत्साहित नए रणनीति के साथ सही उम्मीदवारों की घोषणा कर रही है| विपक्ष जिनता भी शोर मचाएगा कि बीजेपी की लिस्ट में मुस्लिम उम्मीदवार नहीं है उतना ही बीजेपी को फायदा मिलने वाला है|
साथ ही उत्तराखंड, गोवा में भी भाजपा चुनाव जीत सकती है क्योकि अमित शाह ने जैसे टिकट बांटे है उससे भाजपा का अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन संभव है।
उत्तर प्रदेश चुनाव जीतने के लिए भाजपा बहुत बारीकि से हर दांव ठीक चल रही है। एक फरवरी का केंद्र सरकार का मनभावन आम बजट होगा तो 22 फरवरी को मुबंई महानगरपालिका और महाराष्ट्र की नगर पालिकाओं-पचायतों के चुनाव भी भाजपा की जीत की खबर आने वाले चुनाव पर असर डालेंगे|
एक बात तो पक्की है की चुनावों का परिणाम कुछ भी हो परन्तु अब भारतीय राजनीति टकराव की राजनीति ही रहेगी कम से कम जबतक मोदी प्रधानमंत्री है| बड़े नोटों को बंद करने से जनता में नरेंद्र मोदी की छवि साहसी-नेता की तो बनी ही गरीब-नवाज़ नेता की भी बनी| साथ ही नोटबंदी से आर्थिकी के भट्टे बैठने व आर्थिक तकलीफों को यूपी के मतदान तक न उभरने देने के भाजपा ने ऐसे बंदोबस्त किए हैं जिससे चुनाव एकतरफा बने। जिसमे समाजवादी पार्टी का झगड़ा, मायावती की प्रॉपर्टी, भाई के खातों का हल्ला भी चुनाव में भाजपा के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है|
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