प्रकृति के संतुलन हेतु हर वर्ष “एक लॉकडाउन” अनिवार्य
लेखक – दीपक बडुवाल
पूरी दुनियां परेशान है अभी इस “कोरोना वायरस महामारी” के कारण. मैं मैं की रट लगाने वाले बड़े बड़े कथित विकसित देश भी इस छोटे से (न दिखने वाले) वायरस से डरे हए हैं. इसीलिए कहते हैं “उपरवाले की लीला वही जाने”
चीन के वुहान शहर से शुरू हुई ये अजीबोगरीब महामारी कहाँ से और कैसे आई कोई नहीं जानता. ये प्रकृति का अभिशाप है या इंसान की शैतानी खोपड़ी की उपज, किसी को नही पता. अमेरिका इसे “चाइनीज़ वायरस” कह रहा है तो चीन इसे अमेरिकी सेना द्वारा चीन में लाया गया बता रहा है. सच क्या है “हमें” नही पता. पूरा विश्व इस समय लॉकडाउन में है. लाखोँ लोग जहां तहां फंसे पड़े हैं. दुनियां में मरने वालों की संख्या भी दो लाख को पार कर गई है. निश्चित रूप से इस पृथ्वी में किसी भी जीवित व्यक्ति द्वारा व्यापक रूप में देखी और महसूस की गई ये पहली घटना होगी.
सारा संसार इस समय कोरोना काल में जी रहा है. मनुष्य की जीवन शैली ही परिवर्तित हो गई है. हम घरों में बंद है. जीवन की गति मंद हो चुकी है. परन्तु इस मंदी के बीच में हमें एक सकारात्मक चीज देखने को मिल रही है, वो है प्रकृति. प्रकृति फिर से अपने घावों को भरने में लगी है. मनुष्य के घर में बंद होने के कारण विश्व के बहुत से शहरों में प्रदूषण ख़त्म हो चूका है. नदियाँ साफ़ हो रही हैं. अनेकों जीव जंतु स्वच्छ हवा में सांस ले रहे हैं. अन्तर्राष्ट्रीय संचार माध्यमों से प्राप्त जानकारी अनुसार 75 साल बाद धरती की हवा इतनी शुद्ध हुई है. इससे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के समय हवा इतनी ही शुद्ध थी.
इसी बीच एक अच्छी खबर सुनने को मिल रही है कि ओजोन लेयर भरने लगा है. संसार इस समय कोरोना का नकारात्मक पक्ष देख रहा है लेकिन सकारात्मक बात यह है कि यदि आपके एक हाथ से कोई चीज़ छिन रही होती है तो दूसरे हाथ से उससे भी ज्यादा अच्छी चीज़ मिल रही होती है.
दुनियां भर में लॉकडाउन के कारण इस समय हवा एकदम शुद्ध हो चुकी है. प्रदूषण का स्तर बहुत नीचे चला गया है. सेटेलाईट से ली गई तस्वीरों के अनुसार 24मार्च से 24 अप्रैल तक पूरे विश्व में नाइट्रोजन ऑक्साइड की सांद्रता (nitrogen dioxide concentration) में बहुत गिरावट देखने को मिली है . तस्वीरों से पता लगा कि प्रदूषण का स्तर 40से 50 प्रतिशत तक कम हो गया है.
यदि लॉकडाउन में कुछ अच्छा हुआ है तो वो है दिन प्रतिदिन प्रकृति की साफ़ होती तस्वीर. सबसे अच्छी खबर है कि ओजोन लेयर का छेद भरने लगा है. इसकी पुष्टि करते हुए वैज्ञानिकों ने कहा है कि अन्टार्कटिका में एक मिलियन वर्ग किलोमीटर चौड़ा छेद अब बंद हो चुका है. यह हम सबके लिए बहुत ही आश्चर्य की बात है क्योंकि हमने हमेशा से ओजोन लेयर के बारे में चिंता की खबरे ही सुनी थीं . पहली बार अच्छी खबर सुनने को मिल रही है. धरती की इस गंभीर समस्या का ऐसे समाप्त हो जाना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नही है.
विश्वव्यापी लॉकडाउन के कारण कल कारखाने बंद हैं, लोग अपने घरों में कैद हैं. ऐसे में धरती के हवा शुद्ध हो रही है, नदियों का पानी साफ़ और स्वच्छ हो रहा है, प्रदूषण घट रहा है. पशु पक्षी और जानवर इस सुनहरे अवसर का जमकर लाभ उठा रहे हैं. एक अनुसंधान रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया की नदियों में मुश्किल से दिखाई देने वाली डॉल्फिन भी आजकल दिखाई देने लगी है. डॉल्फिन हमेशा स्वच्छ जल में ही दिखाई देती है. पर्यावरणविदों का कहना है कि आज से तीस साल पहले डॉल्फिन नदियों में दिखाई देती थी. लेकिन पानी में बढ़ते प्रदूषण के कारण उसके बाद ये दिखाई देना बंद हो गई थी.
निश्चित तौर पर इस लॉकडाउन से प्रकृति को फायदा पहुँच रहा है. नदियों के पानी के गुणस्तर में सुधार के चलते अब नदियों का पानी पीने योग्य बन चुका है. नदियों के पानी में 60प्रतिशत से अधिक का सुधार देखने को मिला है. भारत में नर्मदा नदी का टीडीएस पहले 126मिलीग्राम मापा गया था अब 70 मिलीग्राम है. अगर आपको जानकारी नही है तो जान लीजिये कि खनिज पानी (mineral water) का टीडीएस 55से 60मिलीग्राम प्रति लीटर होता है.
नासा के उपग्रह द्वारा पिछले बीस वर्षों में नापे गए एअरोसोल स्तर में इस समय उत्तर भारत में एअरोसोल का स्तर सबसे कम पाया है. इसके पीछे मुख्य कारण है मानवीय गतिविधि का कम होना. एअरोसोल बहुत छोटे और ठोस तरल कण होते हैं जो विजिबिलिटी को कम करते हैं और मनुष्य के फेफड़े और ह्रदय को प्रभावित करते हैं. मानव निर्मित एअरोसोल प्रदूषण के घातक स्तर को बढाते हैं. मनुष्य फसलों को जलाकर, जैविक इंधन जलाकर एअरोसोल पैदा करते हैं जबकि ज्वालामुखी, जंगल की आग और आंधी आदि से प्राकृतिक एओरोसोल पैदा होते हैं.
आजकल आपको भी अपने आसपास साफ़ और स्वच्छ मौसम दिखाई दे रहा होगा. चारों तरफ साफ़ नीला आकाश और साफ़ हवा. लॉकडाउन के कारण दुनियां के बहुत से शहरों में प्रदूषण में बड़ी मात्रा में गिरावट देखने को मिल रही है. इस समय सड़कों पर वाहन नहीं हैं और पॉवर प्लांट्स बंद होने के कारण नाइट्रोजन ऑक्साइड में भी कमी देखने को मिल रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर वर्ष दुनियां में लगभग 50 लाख लोग प्रदूषण के कारण मरते हैं.
लॉकडाउन का एक फायदा पशु पक्षी और जानवरों को भी मिला है. आजकल उनको स्वतंत्र रूप से कहीं भी विचरण करते देखा जा सकता है. चाहे वो दक्षिण अफ्रिका की शहरों के सड़कों पर मज़े से सोता हुआ शेर हो या मुंबई के समुन्द्र में अटखेलियाँ करती डॉल्फिन हो. इंसान का इस तरह घरों के अन्दर बंद रहना जानवरों को काफी पसंद आ रहा है. इसी का परिणाम है कि मुंबई में हज़ारों राजहंस (Flemingos) एक साथ दिखाई दिए हैं. इंसान के घरों के अन्दर रहने के दो महीनों में ही प्रकृति किस तरह अपना रूप दिखा रही है. किसी ने सोचा भी नही होगा कि यह लॉकडाउन प्रकृति के लिए वरदान साबित होगा.
इंसान को प्रकृति का सन्देश
कोरोना वायरस के ज़रिये प्रकृति इंसान को सन्देश देना चाह रही है कि अगर इंसान चाहे तो हमेशा इस पृथ्वी को साफ़, स्वच्छ और सुन्दर बनाए रख सकता है. आधुनिकता और पैसों की दौड़ में भाग रहा इंसान प्रकृति के प्रति निर्दयी हो चुका है. प्रकृति इंसान से कह रही है, “हे इंसान, सुधर जा. मैं तो अपना संतुलन बना ही लेती हूँ. लेकिन मुझे संतुलन बनाने के लिए तुझे किसी न किसी रूप में हानि पहुंचानी पड़ती है. इसीलिए मैं चाहती हूँ कि ये जिम्मेदारी तू ही संभाले ताकि प्रकृति का संतुलन भी बना रहे, और तेरा कोई नुकसान भी न हो.”
हमारा कर्तव्य
इसमें कोई शक नही कि यदि इंसान चाहे तो हमेशा अपना गाँव, शहर, देश, दुनियां और प्रकृति को साफ़, स्वच्छ और सुन्दर बनाए रख सकता है. देखिये न, सिर्फ एक प्रदूषण मात्र के कम होने के चलते आज ये दुनिया और हमारी प्रकृति कितने सुन्दर दिख रहे हैं. स्वच्छ हवा, निर्मल पानी, साफ़ और सुन्दर आकाश चारों ओर.
ज़रा सोचिये,
जब एक बहुत छोटा सा वायरस जो दिखाई भी नहीं दे रहा है, अनजाने में ही सही हमारी प्रकृति के घावों को भरने का कारण बन सकता है. जीव, जंतुओं और जानवरों के लिए आज़ादी का प्रतीक हो सकता है, हमारी पृथ्वी के लिए वरदान साबित हो सकता है तो क्यों न हम इंसान “जान बूझकर” हर वर्ष कम से कम एक सप्ताह के लिए “लॉकडाउन” करें, अपनी प्रकृति और धरती को बचाने की खातिर ? ताकि प्रदूषण कम हो सके, हवा शुद्ध हो सके, नदियों का जल निर्मल बन सके और हम स्वयं अपनी प्रकृति का संतुलन बनाएं और प्रकृति को खुश रखें और प्रकृति के कहर से बचें.
विश्व के कई देशों की समय समय पर बैठकें होती हैं, कभी जी7 राष्ट्रों की बैठक, कभी जी20 देशों की बैठक और कभी सार्क देशों की बैठक. इन बैठकों में अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर करने के साथ साथ एक हस्ताक्षर इस समझौते पर भी होने चाहिए कि हम सब देश मिलकर प्रकृति को बचाने के लिए हर वर्ष एक सप्ताह का “प्रकृति के लिए लॉकडाउन” (Lockwon for Nature) अनिवार्य रूप में करेंगे.
ऐसा करके हम अपना इंसान होने का परिचय भी दे सकते हैं, वरना हमारे में और जानवरों में कोई अंतर नहीं रह जाएगा.
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(लेखक M. Com पास , उत्तराखंड प्रदेश के ऋषिकेश शहर में व्यवसायी और समाजसेवी हैं).. उपरोक्त लेख उसके अपने विचार है. उंनसे इस ब्लॉग के एडिटर्स का सहमत होना आवश्यक नही है। यह लेख गेस्ट लेख के रूप में प्रस्तुत है।…. धन्यवाद
- प्रकृति के संतुलन हेतु हर वर्ष “एक लॉकडाउन” अनिवार्य - May 6, 2020
सुंदर एवं स्पष्ठ लेख। बहुत खूब